Friday, March 29, 2019

टीबी के खिलाफ जंग क्या आतंकवाद के खिलाफ जंग से कम है?

राजीव शर्मा
गरीबी, स्वच्छता का अभाव, पोषक आहार की कमी और अज्ञान ने जो अभिशाप मानव को दिए हैं, उनमें एक टीबी भी है। हर साल की तरह इस साल भी टीबी के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए 24 मार्च को 'विश्व टीबी दिवस' मनाया गया। इस सिलसिले में तमाम सरकारी कार्यक्रम हुए। लेकिन ईमानदारी से यह नहीं बताया गया कि 2017 से लेकर अब तक टीबी के मामले कम करने में वांछित कामयाबी क्यों नहीं मिल पा रही। 

यह बताना इसलिए जरूरी है कि भारत ने 2017 में कार्य-योजना बनाई थी कि 2025 तक देश में टीबी उन्मूलन का लक्ष्य हासिल करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा के मुताबिक जब दस लाख की आबादी में एक से भी कम टीबी का मरीज रह जाए, तो इसे टीबी का उन्मूलन माना जाता है। विगत वर्ष के आंकड़े हैं कि देश में टीबी के नए-पुराने 21.5 लाख मरीज दर्ज थे। इसका मतलब है हर दस लाख की आबादी के बीच 165 टीबी मरीज। 

क्या मौजूदा नीतियों से अगले छह साल में टीबी उन्मूलन का घोषित लक्ष्य पाया जा सकेगा-
यानि दस लाख में एक मरीज
?

तमाम नई एंटीबायोटिक दवाओं के ईजाद के बावजूद, टीबी रोग अभी भी दुनिया में मौत की दस सबसे बड़ी वजहों में से एक बना हुआ है। टीबी बैक्टीरिया के एंटीबायोटिक्स के खिलाफ प्रतिरोध-क्षमता विकसित कर लेने की वजह से साल-दर-साल इस रोग का इलाज करना मुश्किल होता जा रहा है।

भारत में हर साल टीबी के साढ़े आठ लाख नए मामले सामने आते हैं। पिछले साल ही इनमें से चार लाख पैंतीस हजार की मौत हो गई। प्रतिरोध-क्षमता विकसित कर लेने की वजह से अब इलाज के लिए कई-कई एंटीबायोटिक्स मिलाकर देना जरूरी हो गया है जिसे मल्टी-ड्रग-थेरेपी कहा जाता है। लेकिन चिंताजनक बात यह कि टीबी के बैक्टीरिया (माइकोबैक्टीरियम टूबरकुलोसिस) ने मल्टी-ड्रग-थेरेपी के खिलाफ भी प्रतिरोधिता विकसित कर ली है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ वर्ष 2016 में भारत में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस के एक लाख 47 हजार मामले मिले।

इसलिए कुछ लोग सही पूछते हैं कि टीबी के खिलाफ जंग क्या आतंकवाद के खिलाफ जंग से कम है!

2 comments:

  1. Till hunger index of India does not improve, TB cannot be eliminated as planned by 2025. Government should focus on reducing malnutrition in the country

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