बोधि श्री / राजीव शर्मा
आजकल आप चाहे किसी बच्चे की जांच करा लें या वयस्क की या बुजुर्ग की, उसके रक्त में विटामिन-डी जरूर कम निकलता है। कोई आश्चर्य नहीं कि थकान बने रहना, मांसपेशियों की कमजोरी या जरा-सा गिर जाने पर हड्डी टूट जाने जैसी समस्याएं आम हो गई हैं। विटामिन डी की कमी से न केवल आपकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं बल्कि आपकी रोग प्रतिरक्षण प्रणाली भी कमजोर हो जाती है और आप जल्दी-जल्दी और बार-बार बीमार पड़ते हैं। बिना श्रम के भी पसीना आने लगता है। ब्लड प्रेशर भी बढ़ सकता है। समय से पहले बुढ़ापा आने लगता है। वैज्ञानिक अध्ययनों से सिद्ध हुआ है कि विटामिन-डी की कमी से कैंसर, ह्रदय रोग, मस्तिष्क आघात,डाइबिटीज, डिप्रेशन व ऑटो इम्यून बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
आजकल आप चाहे किसी बच्चे की जांच करा लें या वयस्क की या बुजुर्ग की, उसके रक्त में विटामिन-डी जरूर कम निकलता है। कोई आश्चर्य नहीं कि थकान बने रहना, मांसपेशियों की कमजोरी या जरा-सा गिर जाने पर हड्डी टूट जाने जैसी समस्याएं आम हो गई हैं। विटामिन डी की कमी से न केवल आपकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं बल्कि आपकी रोग प्रतिरक्षण प्रणाली भी कमजोर हो जाती है और आप जल्दी-जल्दी और बार-बार बीमार पड़ते हैं। बिना श्रम के भी पसीना आने लगता है। ब्लड प्रेशर भी बढ़ सकता है। समय से पहले बुढ़ापा आने लगता है। वैज्ञानिक अध्ययनों से सिद्ध हुआ है कि विटामिन-डी की कमी से कैंसर, ह्रदय रोग, मस्तिष्क आघात,डाइबिटीज, डिप्रेशन व ऑटो इम्यून बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
Photo by Lawrson Pinson on Unsplash
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राहत की बात यह कि आपका
शरीर सूर्य की किरणों से खुद-ब-खुद विटामिन-डी बना सकता है। त्वचा में जो कोलेस्ट्रॉल
होता है, उस पर जब सूर्य की पराबैंगनी-बी (ultraviolet-B) किरणें गिरती हैं, तो वह
विटामिन-डी में तब्दील हो जाता है। एकदम सुबह की धूप में इन किरणों की तीव्रता कम होती
है, लेकिन कुछ दिन चढ़ जाने पर वे पर्याप्त तीव्रता की होती हैं और तेजी से विटामिन-डी
बनाती हैं। सुबह दस बजे से दोपहर 3 बजे तक की धूप यदि 10 मिनट भी बाँहों और चेहरे को
मिल जाए तो एक दिन की जरूरत का विटामिन-डी
बन जाता है।
व्यक्ति को हर दिन बहुत
मामूली मात्रा, महज 600 IU विटामिन-डी की जरूरत होती है। अगर जाड़ों
में आधे घंटे भी सूर्य की ओर नंगी पीठ करके बैठ गए तो यकीन मानिए कि पंद्रह-बीस दिन
का विटामिन-डी मिल गया। शरीर यदि ज्यादा विटामिन-डी बना ले, तो वह बेकार नहीं जाता,
शरीर में जमा हो जाता है और बाद में काम आता है।
तो अब ऐसा क्या हो गया
कि हर बंदा, विशेषकर महानगरों में विटामिन-डी की कमी झेल रहा है। इसके लिए जिम्मेवार है, बदला हुआ ज़माना,
बदली हुई जीवन शैली जिसमें हम चाहें या न चाहें, हमेशा सूर्य किरणों से दूर ही रहते
हैं। घर ऐसे कि उनमें धूप नहीं आती, वे चारों तरफ से बंद होते हैं, दुकान-ऑफिस में
तो इसका सवाल ही नहीं। पैदल आज धूप में कौन चले, बस, मेट्रो या कार में चलते हैं। फैशन की
दरकार ऐसी कि धूप कहीं चेहरे और बाँहों पर न पड़ जाए ! कहीं हमारा गोरापन कम न हो जाए,
इसलिए घर से बाहर निकलते हैं तो 'सन-स्क्रीन' क्रीम लगाकर निकलते हैं। यह सच है कि अधिक
देर धूप में रहने से भी समस्यांएं हैं। लेकिन उससे बिल्कुल दूर रहना भी बीमारी मोल लेना
है।
कभी खिड़की से धूप झाँकने
की कोशिश करे तो हम पर्दे टांगकर उसके प्रवेश पर पर 'बैन' लगा देते हैं--खबरदार, जो कोई रोशनी की
किरण अंदर आए ! रोशनी की ये किरणें जिंदगी के लिए कितनी जरूरी है, इसे समझने की कोशिश
नहीं की जाती। यहीं से विटामिन-डी की कमी की समस्या शुरू होती है।
यदि धूप से विटामिन-डी
न मिल पाए, तो खानपान से भी इसे प्राप्त किया जा सकता है। मशरूम, मछलियों और अण्डों की जरदी (पीला हिस्से) में यह विशेष रूप से पाया जाता है। आमतौर पर कमी होने पर लोग
कॉड लिवर ऑइल से विटामिन-डी प्राप्त करते हैं। दिल्ली में मदर डेरी के दूध में विशेष
रूप से यह मिलाया जाता है। विटामिन-डी वाले दूध का दही, छाछ, पनीर अच्छा रहता है।
शरीर में विटामिन-डी
की अत्यधिक कमी हो जाए तो उसके लिए डाक्टर की सलाह से सप्लीमेंट लेना जरूरी हो
जाता है। वे पहले रक्त जाँच के जरिए पता करते हैं कि कमी कितनी है। सप्लीमेंट
की 'डोज़' तय करने के लिए यह जरूरी है क्योंकि एक सीमा से अधिक विटामिन-डी विषाक्तता पैदा करता है।