Sunday, May 5, 2019

वायु प्रदूषण से बढ़ रही है सांस की बीमारी 'ऐज्मा'

राजीव शर्मा
सांस या दमा के मरीजों को अक्सर मुंह में इनहेलर (inhaler) लगाए देखते हैं। हम ऐसे सीन देखकर सिर्फ यही समझ पाते हैं कि उससे मरीज को सांस लेने में मदद मिल रही है। लेकिन हम उस वक्त उस मरीज की ऐज्मा (asthma) की पीड़ा या परेशानी नहीं समझ पाते। यदि वह सही समय पर इनहेलर का इस्तेमाल न कर पाए  तो उसकी मौत तक हो सकती है। अरसा पहले आई सलमान खान की चर्चित फिल्म दबंग में ऐज्मा की मरीज, उसकी मां नैना देवी बनी डिंपल कपाड़िया सिर्फ इसलिए दम तोड़ देती हैं कि उनके घर में घुस आए लुटेरे उनका इनहेलर छीन लेते हैं और सांस न ले पाने से उनकी मौत हो जाती है।

क्या है ऐज्मा ? यह सांस संबंधी बीमारी है। जब आप आसानी से और पूरी सांस न ले पा रहे हों तो समझिए आप ऐज्मा के शिकार हो रहे हैं। हालांकि लक्षण और भी हैं जैसे बलगम वाली या बिना बलगम वाली खांसी, सीने में जकड़न महसूस होना या सांस फूलना या सांस लेने में कठिनाई महसूस होना। सांस लेते समय या बोलते समय घरघराहट होना। सुबह या रात के समय व्यक्ति की हालत और बिगड़ती है और ठंडी हवा से परेशानी बढ़ती है। व्यायाम के समय कई बार जलन होने से हालत और बदतर हो जाती है। जोरजोर से सांस लेना और उससे थकान महसूस करना भी, इसी का लक्षण है तो कई बार इससे उलटी की शिकायत हो सकती है।

ऐज्मा का सबसे बड़ा कारण है वायू प्रदूषण, जिसमें सबसे बड़ा योगदान निरंतर बढ़ रहे वाहनों का है। जैसे-जैसे प्रदूषण बढ़ा है ऐज्मा खतरा भी बहुत बढ़ गया है। एक अध्ययन के मुताबिक पिछले पांच सालों में ही भारत में ऐज्मा के मरीजों की संख्या बढ़कर दोगुनी हो गई है। दिल्ली एक बार दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर होने का तगमा पा चुका है। दिल्ली ही नहीं, देश के कई बड़े शहर प्रदूषण के मामले में एक दूसरे को पछाड़ने की होड़ करते दिखाई दे रहे हैं।

कई बार, किसी पदार्थ विशेष से एलर्जी भी ऐज्मा का कारण हो सकती है, जैसे सल्फर डाइ-ऑक्साइड युक्त घरेलू रसायन, कुत्ते और बिल्लियां, घर के धूल के कण, पुष्प-पराग, औधोगिक धुंआ, सुगंधित सौंदर्य प्रसाधन आदि।

लैंसेट ग्लोबल हैल्थ रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ऐज्मा के दुनिया में सबसे ज्यादा मरीज हैं। मोटर वाहनों का धुंआ सबसे बड़ी वजह है। दो-तीन दशक पहले तक हालत यह न थी। वाहनों से कार्बन डाइआक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड, हाइड्रोकार्बन्स और सल्फर आक्साइड के तौर पर होने वाला वायु प्रदूषण इसकी सबसे बड़ी वजह बन गया है। जैसे-जैसे सड़कों पर वाहन बढ़ रहे हैं हालात ख़राब होते जा रहे हैं।

होता यह है कि जब धूल और धुंए के कण हमारे फेफड़ों में जाकर फंस जाते हैं तो वे हमारी सांस लेने वाली नलियों में बाधा पैदा कर देते हैं। मरीज की दिल की धड़कन बढ़ जाती है। यही ऐज्मा की शुरूआत होती है। एक अध्ययन के अनुसार यदि आपके आसपास वाहनों की आवाजाही ज्यादा हो तो ऐज्मा का खतरा बढ़कर दोगुना हो जाता है।

ऐज्मा बच्चों पर तो कहर बनकर टूटता है। अपरिपक्व प्रतिरक्षा शक्ति (immunity) के कारण, वे जल्द ही इसका शिकार हो जाते हैं। हर साल 40 से 50 लाख बच्चे ऐज्मा का शिकार होते हैं, जिनमें से अकेले भारत में ही करीब चार लाख बच्चे होते हैं। ऐज्मा के बाल मरीजों के मामले में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर है। डर इस बात का है कि यदि प्रदूषण बढ़ता रहा तो जल्द ही इस मामले में भारत पहले नंबर पर आ सकता है। सबसे ज्यादा बच्चे वाहनों से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड  के कारण  ऐज्मा का शिकार होते हैं।

ऐज्मा से पीड़ित बच्चों में 92 फीसदी उन क्षेत्रों से आते हैं जहां वाहनों की आवाजाही जरूरत से ज्यादा है। वाहनों से भारी प्रदूषण के अलावा भी और कई वजहें ऐज्मा का कारण बनती हैं। जैसे सर्दी फलू और धूम्रपान भी इसकी वजह हो सकते हैं। एसिड रिफ्लक्स (पेट के एसिड का भोजन नली तक आना) भी सांस फूलने का एक कारण हो सकता है। तो दवाइयां भी ऐज्मा की वजह बन सकती हैं और शराब की लत भी। भावनात्मक तनाव भी ऐज्मा का एक कारण हो सकता है और जरूरत से ज्यादा व्यायाम भी।

कई बार मौसम में बदलाव और अनुवांशक वजहें भी जिम्मेदार हो सकती हैं। यदि परिवार में ऐज्मा का इतिहास रहा हो तो हम कुछ सावधानियां बरतकर इससे बच सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले हमें अपनी दिनचर्या को स्वस्थ बनाना चाहिए। हमें नियमित तौर पर प्राणायाम और व्यायाम करना चाहिए। सामान्य चाय के बजाय तुलसी, अदरक और काली मिर्च की चाय पिएं। हरी और पत्तेदार सब्जियां खाएं। शलगम, पुदीना, आलू, ब्रोकली, चौलाई और सहजन आदि का सेवन करें। विटामिन ए, बी और सी वाले भोजन खाना ऐज्मा से बचाव का बेहतर उपाय हैं। जिन चीजों से एलर्जी है, उनसे दूर रहें। रात को देर तक न जगें और धूम्रपान करते हैं तो उससे तुरंत निजात पा लें।

7 मई, 2019 को 'वर्ल्डऐज्मा डे' है। कृपया उक्त जानकारी को व्यापक रूप से प्रसारित करें। 

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