Wednesday, May 1, 2019

कितनों को लूट लिया इन पीले-चिकने 'आमों' ने ....!


राजीव शर्मा / बोधि श्री 

आम का मौसम है। पीले और तरोताज़ा आम देखकर आपके मुंह में भी पानी भर आता होगा, लेकिन क्या आपको पता है कि स्वास्थ्य के लिए वरदान माने जाने वाले आम एक जहर भी अपने पेट के अंदर पहुंचा सकते हैं। एक ऐसा जहर जो आपको कैंसर जैसी बीमारी दे सकता है, आपकी याददाश्त ख़त्म कर सकता है व आंखों की रोशनी छीन सकता है। यह कहानी सिर्फ आम की नहीं, बल्कि आम, पपीता, चीकू, केला आदि अनेक फलों के बारे में भी उतनी ही सही है। 

असल में फलों को तेजी से पकाने के चक्कर में लाखों करोड़ों लोग इन बीमारियों के जोखिम से रूबरू हैं। फलों को तेजी से पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड के इस्तेमाल से ऐसा हो रहा है। कैल्शियम कार्बाइड से पके फल आज भारत के हर शहर की फल मंडियों में बिक रहे हैं और लोग इन्हें स्वास्थ्य के लिए जरूरी मानकर बड़े चाव से खा रहे हैं। 

Photo by HOTCHICKSING on Unsplash
 स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने की वजह से भारत में भी अन्य देशों की तरह कैल्शियम कार्बाइड से फल पकाने पर प्रतिबन्ध है। कोई व्यक्ति यदि कैल्सियम कार्बाइड से फल पकाने का दोषी पाया जाए तो  खाद्य सुरक्षा और मानक विनियम, 2011 के तहत उस पर पांच लाख रुपये का जुर्माना या छह महीने की जेल या दोनों सजा दी जा सकती है। लेकिन शायद ही ऐसा कोई शहर हो जहां फल मंडियों के आसपास कार्बाइड से पकाये फल खुलेआम न बिक रहे हों। समय-समय पर कई अखबार और टीवी चैनल अपने स्टिंग आपरेशनों में इसका खुलासा करते रहते हैं, लेकिन इसका प्रशासन पर इसका कोई असर नहीं पड़ता।

फल-विक्रेता कच्चा आम, पपीता, चीकू, केला आदि  मंगाना ज्यादा अच्छा समझते हैं। कच्चे फल को पकाने के लिए वे पहले उसे एक टोकरी में रखते हैं फिर उसमें कार्बाइड का एक टुकड़ा डाल देते हैं। फिर टोकरी को कागज से या जूट की बोरी से ढक दिया जाता है। ऐसी कई टोकरियों को एक कमरे में रखकर 30 से 40 घंटे के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद वे बाजार में आ जाते हैं।

बड़े व्यापारी बहुत सारा आम या अन्य फल इकट्ठा एक कमरे में रख देते हैं। उसी कमरे में कार्बाइड की एक मात्रा भी रख दी जाती है। उसके बाद कमरे को अच्छी तरह से सील कर दिया जाता है। जब फल पक जाते हैं तो उन्हें बेचने के लिए भेज दिया जाता है। आम की बात करें तो कार्बाइड से पकाने पर आम का छिल्का चटक पीला हो जाता है जिससे आम की सुंदरता भी बढ़ती है। एक फल व्यवसायी का कहना था कि नेचुरल तरीके से आम को पकाने में 15 दिन तक लग जाते हैं। इतने लंबे समय तक पूँजी फंसाना क्यों फंसाएं, इसलिए जल्दी से फल कार्बाइड से पकाकर बेचे जाते हैं।

कार्बाइड से  केला और पपीता कुछ ही घंटों में पककर तैयार हो जाता है जबकि प्राकृतिक तरीके से केला और पपीता पकाने में चार से पांच दिन लगते हैं। लेकिन कार्बाइड से पके फलों का स्वाद कमतर तो होता ही है, लम्बे समय तक कार्बाइड से पके फल खाने पर आपका नर्वस सिस्टम खराब हो सकता है, आप त्वचा कैंसर जैसी बीमारी का शिकार भी हो सकते हैं। इससे लकवा भी हो सकता है। कार्बाइड के असर से दस्त हो जाना और पेट दर्द की शिकायत तो आम है। कार्बाइड के आंखों के संपर्क में आने से इससे आंखों की रोशनी तक जा सकती है।

कार्बाइड से पके आमों या फलों से बचाव के लिए आप कुछ सावधानियां अपने स्तर पर बरत सकते हैं। पहली सावधानी यह कि फलों को नमक के पानी में कम  से कम 20 मिनट अच्छी तरह डुबोकर रखें और फिर साफ़ पानी से धोने के बाद ही खाएं। संभव हो तो बाजार से कच्चा आम या फल खरीदें, उन्हें अखबार में लपेटकर बंद कमरे में रख दें। पांच छह दिन के भीतर वे पककर तैयार हो जाएंगे।


No comments:

Post a Comment